लोगों के बीच डर लगता है? ये सोशल फोबिया हो सकता है

लोगों के बीच डर लगता है? ये सोशल फोबिया हो सकता है

के. संगीता

हम सभी, कभी ना कभी कुछ सामाजिक ‍स्‍थि‍तियों में घबराहट या असुविधा महसूस करते हैं। ऐसा भी हुआ होगा कि किसी अपरिचित व्‍यक्ति से मिलते समय या कार्यालय में कोई बडी प्रजेंटेशन देते हुए आपकी हथेलियां गीली हो गई हो। सार्वजनिक रूप से बोलने अथवा अनजान लोगों से भरे कमरे में जाना हर एक के लिए रोमांचक नहीं होता परंतु फिर भी अधिकतर लोग ऐसा कर सकते हैं।

मगर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अत्‍यधिक चिंता अथवा अपने बारे में कोई नकारात्‍मक राय कायम कर लिए जाने के डर अथवा सामाजिक या कामकाज की स्‍थिति में ठुकरा दिए जाने की अत्‍यधिक चिंता के कारण समाज अथवा कामकाज से बचना चाहते हैं और यदि ऐसी स्थिति से बचना संभव नहीं होता तो वे बेहद घबराहट और बेचैनी का अनुभव करते हैं। हालांकि ऐसे लोग यह जानते हैं कि उनका डर बेबुनियाद और अकारण है मगर अपनी चिंता और बेचैनी के आगे वे असहाय महसूस करते हैं। इसे ही सोशल एंग्‍जाएटी डिस्‍आर्डर या सोशल फोबिया कहा जाता है।

इस डिस्‍आर्डर से पीड़ि‍त लोग अन्‍य लोगों के सामाने अपने काम या दिखावट के प्रति बहुत जागरूक होते हैं तथा उनके हाव-भाव उनकी बेचैनी को दर्शाते हैं जैसे शर्माना, बोलने में लड़खड़ाना। वे इस बात से डरते हैं कि कहीं लोग उन्‍हें मूर्ख, फूहड़ या बोरिंग न कहें। सोशल एंग्‍जाएटी वाले लोग अत्‍यंत गंभीर शारीरिक लक्षणों का भी सामाना करते हैं जिसमें दिल की धड़कनों का बढ़ना, ऊबकाई आना और पसीने से तर-बतर होना शामिल हैं। ऐेसे लोग अपने डर के समय बड़े अटैक से भी गुजरते हैं। उनका स्थितियों से डरना या बचने की कोशिश करना किसी सामान्‍य अस्‍वस्‍थ‍ता के कारण या किसी अन्‍य दिमागी डिस्‍आर्डर के कारण या किसी अन्‍य ड्रग या दवाओं की वजह से नहीं होता है।

यह डिस्‍आर्डर लोगों के जीवन को बरबाद तक कर सकता है। उदाहरण के लिए व्‍यक्ति नौकरी के ऐसे अवसर ठुकरा देते हैं जहां अक्‍सर नए लोगों से संपर्क करना होता है अथवा दोस्‍तों के साथ इस डर से कि खाते या पीते समय उनके हाथ कांपेंगे, खाना खाने से बचते हैं। उनके लक्षण उनके रोज के रूटीन, कार्यक्षेत्र या सामाजिक जीवन को इतना प्रभावित करते हैं कि उनके लिए स्‍कूल पूरा करना, साक्षात्‍कार देना, जॉब करना, दोस्‍ती करना या रोमांटिक रिश्‍ते कायम करना असंभव हो जाता है। ऐसे व्‍यक्ति को मेजर डिप्रेसिव डिर्स्‍आडर (अवसाद) भी हो सकता है या शराब अथवा किसी अन्‍य नुकसानदेह चीजों की लत भी पड़ सकती है।

यूं तो सामाजिक एंग्‍जाएटी को लोग अलग-अलग ढंग से महसूस करते है फिर भी यदि आपको यह डिर्स्‍आडर है और आप किसी तनाव वाली स्थिति में हैं तो आपको शारीरिक लक्षणों का सामना भी करना पड़ सकता है जैसे हृदयगति का बढ़ना, मांसपेशियों में जकड़न, चक्‍कर आना, पेट की परेशानी और डायरिया, सांस फूलना आदि। यह लक्षण किसी घटना से ठीक पहले से भी हो सकते हैं या व्‍यक्ति हफ्तों तक इस बारे में चिन्तित रह सकता है। घटना के बाद भी वे अपना समय और ऊर्जा यह सोचने में लगा देते हैं कि उन्‍होंने उस स्थिति में कैसा व्‍यवहार किया था।

यह डिर्स्‍आडर सामान्‍यत: 13 वर्ष के आसपास होता है। इसे बचपन में होने वाली प्रताड़ना अथवा अन्‍य बच्‍चों द्वारा परेशान किए जाने से भी जोड़ कर देखा जाता है। बचपन से ही बहुत ज्‍यादा शर्मीले बच्‍चे बड़े होकर चिन्तित वयस्‍क बनते हैं। ऐसा ही उन बच्‍चों के साथ होता है जिनके अभिभावक उन्‍हें कठोर नियंत्रण में रखते हैं। बच्‍चों में इसे एंग्‍जाएटी तब कहा जाता है जब वे अपने से बड़े लोगों के साथ ही नहीं बल्कि अपनी आयु के अन्‍य बच्‍चों से संपर्क करते समय भी डरते हों या तनाव में आ जाते हों। इसे वे रोकर, नखरे करके, जड़वत होकर अथवा अनजान लोगों या स्थितियों का सामना करने से भागने से प्रकट करते हैं।

कारण

सोशल एंग्‍जाएटी डिर्स्‍आडर होने का कोई एक कारण नहीं है। आनुवांशिकता इसका एक कारण हो सकता है। यदि आपके घर में परिवार के किसी सदस्‍य को सोशल फोबिया है तो आपके लिए भी जोखिम बढ़ जाता है। इसे अतिसक्रिय एमाईडैला जो भय की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने वाला मस्तिश्‍क का एक भाग है से भी जोड़ा गया है।

उपचार

सोशल एंग्‍जाएटी के लिए दो तरह के उपचार उपलब्‍ध हैं। ये हैं साइकोथेरेपी (जिसे साइकोलॉजिकल काउंसलिंग या टॉक थेरेपी भी कहा जाता है) अथवा दवाएं या ये दोनों एक साथ भी दिए जा सकते हैं।

साइकोथेरेपी सोशल एंग्‍जाएटी से जूझ रहे अधिकतर लोगों में पाए जाने वाले लक्षणों में सुधार लाती है। इस थेरेपी में मरीजों को अपने बारे में नकारात्‍मक विचारों को पहचानना और बदलना सिखाया जाता है साथ ही सामाजिक स्‍थितियों में आत्‍मविश्‍वास बढ़ाने के तरीके सिखाए जाते हैं।

कॉगनिटिव बिहेवरियल थेरेपी एंग्‍जाएटी के लिए सबसे प्रभावी साइकोथेरेपी है और यह व्‍यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों ही रूपों में बहुत प्रभावी होती है। एक्‍सपोज़र पर आधारित कॉग्‍नेटिव बिहेवरियल थेरेपी में धीरे धीरे उन स्‍थितियों का सामना करना सिखाया जाता है जो व्‍यक्ति में सबसे ज्‍यादा डर पैदा करती हैं। इससे आत्‍मविश्‍वास बढ़ता है। साथ ही सामाजिक कौशल बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग या रोल-प्‍लेयिंग की प्रैक्टिस कराई जाती है।

सामाजिक स्थितियों का सामाना करने के लिए एक्‍पोजर की प्रैक्टिस कराने से बहुत मदद मिलती है। इसके लिए सबसे पहले उन स्थितियों की पहचान करें जिनमें आप सबसे ज्‍यादा एंग्‍जाएटी का सामना करते हैं। उसके बाद उन स्थितियों के लिए दैनिक और साप्‍ताहिक लक्ष्‍य निर्धारित करें। जैसे, अपने करीबी रिश्‍तेदार या दोस्‍त के साथ पब्लिक में खाना खाएं, किसी से भी मिलने पर पहले खुद उनका अभिवादन करें, किसी को कॉम्‍प्‍लीमेंट दें, दुकानदार से कोई सामान ढूंढने में मदद करने को कहें, किसी अजनबी से रास्‍ता पूछें, लोगों से उनके घर, बच्‍चों, नाती-पोतों, हॉबीस अथवा यात्रा आदि की बात करें, स्‍ट्रेस मैनेजमेंट के तरीके सीखें।

यह ध्‍यान रखें कि आपके आसपास के अधिकतर लोग आपके काम या दिखावट पर ज्‍यादा ध्‍यान नहीं देते। पहले पहल यह काम बहुत ही चुनौती भरा लग सकता है परन्‍तु धीरे धीरे इन स्थितियां में आपको घबराहट महसूस होनी कम होती जाएगी। इस प्रकार इन स्थितियों का बार बार सामना करते रहने से आप इनको बिना किसी तनाव या भय के झेलने के तरीके सीख जाएंगे। किसी भी हालत में इन स्थितियों से बचने का प्रयास न करें।

सोशल एंग्‍जाएटी के लिए दी जाने वाली दवाओं की बात करें तो सबसे पहले सिलेक्टिव सेरोटोनिन रिअपटेक इन्‍हीबिटर्स (एसएसआरआई) का नाम आता है। इसके लिए सेरोटोनि‍न और नोरेपाइनफ्राइन रिअपटेक इन्‍हीबिटर भी अच्‍छे विकल्‍प हैं। इसके अलावा एंटी-एंग्‍जाएटी दवाओं में बेनजोडाईजेपाइन्‍स एग्‍जाएटी के लेवल को कम करते हैं।

इसके साथ-साथ बीटा ब्‍लॉकर्स एड्रेनलाईन के प्रभाव को कम करके ह्दयगति, रक्‍तचाप, बढ़ी हुई धड़कन, कांपती हुए आवाज या अंगों जैसे शा‍रीरिक लक्षणों को कम करते हैं। लेकिन यह ड्रग्‍स किसी विशेष परिस्थि‍तियों, जैसे के भाषण देते समय दिए जाते हैं।

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